*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.
₹385
₹450
14% OFF
Hardback
All inclusive*
Qty:
1
About The Book
Description
Author
यह जो हवा मैं तुम्हारे आसपास उठा रहा हूं इसके लिए ज़रा तुम ऊंचे उठो। ...जरा ऊंचे उठो! मैं जहां की खबर लाया हूं वहां की खबर लेने के लिए चीड़ बनो। थोड़े सिर को उठाओ! थोड़े सधो!<br>मेरे साथ गुनगुना लो थोड़ा। जिस एक की मैं चर्चा कर रहा हूं उस एक की गुनगुनाहट को तुम में भी गूंज जाने दो।<br>...और तब तुम्हें पता चलेगा कि जैसे खुल गई कोई खिड़की। और जिसे तुमने समझा था- सिर्फ एक विचार - वो विचार न था; वो ध्यान बन गया। और जिसे तुमने समझा था- सिर्फ एक सिद्धांत एक शास्त्र - वो सिद्धांत न था शास्त्र न था; वो सत्य बन गया।<br>तो थोड़े उठो! थोड़े जगो! थोड़े सधो!... तुम मुझे पियो। तुम मेरे पास ऐसे रहो जैसे कोई फूल के पास रहता है।<br>और मुझे ऐसे सुनो जिसमें प्रयोजन का कोई भाव न हो। जो मुझे प्रयोजन से सुनेगा वो चूकेगा। जो मुझे निष्प्रयोजन आनंद से सुनेगा...स्वान्तः सुखाय तुलसी रघुनाथ गाथा ... वही पा लेगा। उसके जीवन में धीरे-धीरे क्रांति घटनी शुरू हो जाती है।