Astittva Ki Khoj : Bhartiya Itihas Ki Mahattvapurn Striyan

About The Book

स्त्रिायों के योगदान का जश्न मनानेवाले पुरुष विमर्श में आमतौर पर यह कहने का चलन रहा है कि स्त्रिायाँ कोमल लताओं-सी हैं जो अपनी नाज़ुक पत्तियाँ किसी ऐसे विशाल वृक्ष के तने के गिर्द लपेटती ऊपर चढ़ती हैं जो उनके जीवन का पुरुष हो चाहे वह पुरुष पिता हो पति हो या फिर मार्गदर्शक। पर हमने पाया कि इस बिम्ब के ठीक उलट कुछ स्त्रिायाँ स्वतंत्रा रूप से ‘वृक्षों’ में विकसित हुईं। इस पुस्तक की सभी स्त्रियाँ यहाँ इसीलिए मौजूद हैं। इन स्त्रिायों ने कुछ ऐसा रचा-गढ़ा जो उनके बाद भी जि़न्दा है फिर चाहे वह रचना कोई संस्था हो कला विधा या उसका रचना-संकलन हो या कोई ढाँचा कोई दर्शन कोई तकनीक या कोई सामाजिक आन्दोलन हो। अपने जीवन के एकान्त स्थलों को छोड़ व्यापक दुनिया से जुड़ने की चेष्टा में उन्होंने तमाम विरोधों व निषेधों का सामना किया। गायिकाओं और सक्रिय कर्मियों ने मूक कर देने की धमकियों के बावजूद नतीजों की परवाह किए बिना बेधड़क अपनी बात कही। राजनीतिज्ञों और अभिनेत्रियों ने घर के बाहर मुँह उघाड़ने पर निन्दा झेली पर फिर भी जुटी रहीं। उनकी कथाओं का संकलन कर हम एक परम्परा रच रहे हैं रिवायतें स्थापित कर रहे हैं जिनसे आज की नारियाँ प्रेरणा ले सकती हैं और अपना जीवन सुधार सकती हैं। समृद्ध वैविध्य के ताने-बानों से बुनी उनकी इन कथाओं को एक ही वृहत् पाठ के रूप में पढ़ा जाना चाहिए। -भूमिका से|
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