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About The Book
Description
Author
करोड़ों साहित्य के पन्नों में बिखरी पड़ी है स्त्री... उसके अंतर की संवेदना! विचित्र किन्तु सत्य यह तथ्य कि: अभूतपूर्व विकास के कीर्तिमानों को अर्जित करने उपरांत भी सभी जगह स्वयं को स्थापित कर चुकने के उपरांत भी स्त्री आज भी पूर्णतया सशक्त नहीं है । है क्या? वह आज भी पराश्रित आज भी वस्तु आज भी भोग्या की निर्मम स्थिति में कैद क्यों है?