Asvikar Kyun Main?

About The Book

करोड़ों साहित्य के पन्नों में बिखरी पड़ी है स्त्री... उसके अंतर की संवेदना! विचित्र किन्तु सत्य यह तथ्य कि: अभूतपूर्व विकास के कीर्तिमानों को अर्जित करने उपरांत भी सभी जगह स्वयं को स्थापित कर चुकने के उपरांत भी स्त्री आज भी पूर्णतया सशक्त नहीं है । है क्या?वह आज भी पराश्रित आज भी वस्तु आज भी भोग्या की निर्मम स्थिति में कैद क्यों है? वह क्या महज़ एक मशीन है? मंदिर में पूजे जाने वाली एक देवी है? बंधनों में जकड़ी समिधा की सामग्री है? उसके होने की बोली आज भी? आज भी पुरानी कीमत चूका कोई भी ऐरा गैरा नथ्थू खैरा खरीद के लिए उद्धत? लार टपकते राजनीति के शातिर खिलाडी तय करें की उसका कितना हिस्सा सत्ता में? कितना प्रशासन में और कितना दूसरे इज़ारों में क्या?आजादी! ..हां हां आजादी ..उसे मुक्कमल आजादी चाहिए और मुक्कमल ज़िन्दगी भी!यह किताब मैं.नहीं.हूँ? उस दिशा में स्त्री की भूमिका को बदले संदर्भों में रेखांकित करने का एक विनम्र प्रयास है। हल्की सी शुरुआत समझिये ...
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