पुस्तक परिचययह संग्रह उन लम्हों की कहानी है जहाँ मोहब्बत थी मगर मुनासिब नहीं थी। ‘और फिर… मैंने उसे भी जाने दिया’ एक शांत स्वीकृति है — जब अपनेपन की सबसे प्यारी चीज़ को दिल पर पत्थर रखकर अलविदा कहना पड़ता है। कविताएं ‘बारिश’ की महक से लेकर ‘यादों’ की तपिश तक ले जाती हैं। यह किताब हर उस पाठक की साझी कहानी है जिसने कभी खोकर भी मुस्कराना सीखा है।कवि परिचयललित शिल्पा कश्यप - “शिला” दिल की गिरहों को शब्दों में पिरोने वाले कवि हैं। उनके लेखन में पुराने प्यार की कसक यादों की नमी और अनेक उद्वेलित मनोभावों की सहज स्वीकृति झलकती है। वे कविताओं में जीते हैं — और हर पाठक को अपने शब्दों से उनके अपने हिस्से के दर्द और अहसासों से रूबरू कराते हैं ।
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