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About The Book
Description
Author
कुत्ता कान-पूँछ हिलाने के साथ-साथ कूँ-कूँ भी करने लगा जैसे डाँटकर और जोर देकर कह रहा हो ‘‘...चुप झूठे कहीं के। मेरी जीभ और नाक झूठी नहीं हो सकती। मुझे दुनिया में उन पर सबसे अधिक विश्वास है तुमसे भी अधिक। मैं नहीं मान सकता कि...’’ मैंने बहुत समझाया कसमें खाईं लेकिन उसके कान-पूँछ का हिलना बंद न हुआ। उसी समय असावधानी या घबराहट में मुन्ना का दायाँ पैर कुत्ते के दूधवाले तसले में गिर गया। कुत्ते ने पैर में दाँत गड़ा दिए जैसे मेरी बात पर बिल्कुल विश्वास न हो मुन्ना का खून मेरे खून से मिलाना चाहता हो। मुझे लगा—मेरे पैर में दाँत गड़ गए हों। क्रोध में मेरी फुँकार छूट गई जैसे कहा हो ‘‘इतना विश्वास!’’ और उठकर दूध का तसला कुत्ते के सिर पर दे मारा। कुत्ता कें-कें करने लगा मुन्ना की ऐं-ऐं और बढ़ गई। —इसी संग्रह से अपने समय के शीर्ष संपादक व लेखक श्री अवध नारायण मुद्गल की पठनीय कहानियों का संकलन। ये रचनाएँ समाज में फैली विसंगतियों और विद्रूपताओं को आईना दिखाने का सशक्त माध्यम रही हैं।