Avismaraneey Prerak Shabd-Saadhak

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साहित्य जीवन का प्रकाश श्रोत है तो साहित्यकार प्रकाश-पुंज| कुछ साहित्यकार अपनी साहित्यिक यात्रा प्रारंभ कर रास्ते में विराम ले लेते है और मंचीय हो कर रह जाते हैं| पर कुछ विरले ऐसे होते हैं जिनके लिए चिंतन और लेखन उनकी आत्मा बन कर रह जाते हैं और वे एकांत शब्द-साधना में लीन रहते हैं| कालांतर में उनका साहित्य स्तरीय और लोक-कल्याणकारी हो ही जाता है लेखनी और उनकी वाणी दोनों ही प्रखर हो जाती हैं| कुछ जन्मना ओजस्वी होते हैं तो कुछ अपने योगवल से अपनी प्रतिभा को तरासते हैं और फिर उनकी लेखनी बोलने लगती है| अपने चिंतन क्रम में मुझे ये ज्ञात हुआ कि कुछेक अपवाद को छोड़ अधिकांश ओजस्वी साहित्यकार पूर्ण अभाव में पले-बढ़े और अपने निरंतर कर्म-योग से साहित्य संसार में प्रतिमान स्थापित किए हैं| इसीलिए तो कहा गया है कि भारत की अनंत प्रतिभा इसके गांव से ही प्रस्फुटित होती हैं और क्रमश: राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय फलक पर कीर्तिमान स्थापित करती हैं| साहित्यकारों का चेतन मन जब सामाजिक रीतियों-कुरीतियों का अनुशीलन करता है तो उसे अनंत संभावनाएं हिलोरें लेती नजर आती हैं जिसपर उसकी ओजस्वी लेखनी धरा तलासने लगती हैं और फिर उदात्त प्रसव-पीड़ की तरह सुंदर साहित्य के आविर्भाव का धरातल थिरकने लगता है| जब यही चिंतन सुविचार के माध्यम से आचार में परिवर्तित होता है तब वही व्यक्ति आचार्यत्व को प्राप्त कर विलसता है| ऐसे व्यक्तित्वों में से कुछ ऐसे भी होते हैं जो महाकवि तुलसी की तरह एकांत शब्द साधना के माध्यम से असीम स्वांत: सुखाय को प्राप्त करते हैं और उनकी कृतियाँ जन-मानस को सुमार्ग दिखाती दृश्य होने लगती हैं|
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