Awaak : Kailash - mansarovar : Ek Antaryatra
Hindi

About The Book

किसी भी यात्रा में भूगोल कुछ-न-कुछ बदलता है। जगहें चेहरे घटनाएँ दृश्य आदि बदलते हैं पर हर यात्रा ज़रूरी नहीं कि अन्तर्यात्रा हो। जब होती है तो हम भी साथ-साथ बदलते हैं हमारी आन्तरिकता का भूगोल भी बदल जाता है। ऐसी यात्राओं के वृत्तान्त बिरले हैं। कवयित्री गगन गिल का यह अन्तर्यात्रा-वृत्तान्त हिन्दी में एक अनोखा दस्तावेज़ है जिसमें वृत्तान्त का टीसपन कथा का प्रवाह और कविता की सघन आत्मीयता सब एक साथ है। उसमें स्मृतियों संस्कारों अन्तर्ध्वनियों जीवन की लयों आदि सबका एक वृन्दवादन लगातार सुनाई देता है। कुछ इस तरह का भाव कि सब कुछ एक-दूसरे से जुड़ा है प्रतिकृत और झंकृत है। इस अन्तर्यात्रा में अनेक व्यक्ति आते-जाते हैं उनकी छवियाँ उक्तियाँ संवाद भंगिमाएँ और क्रियाएँ-प्रतिक्रियाएँ बेहद संवेदनशीलता से अपनी समूची चित्रमयता में उकेरी गई हैं। कैलाश-मानसरोवर जाते और वहाँ से लौटते मानो एक तरह की कथायात्रा भी चलती रहती है। प्रकृति मनुष्य हिमालय ठंड झीलें नदियाँ जल वायु आदि सब एक निरन्तर प्रवाह में हैं कभी आकस्मिक कभी अप्रत्याशित कभी रहस्यमय कभी कुतूहल उपजाते कभी नीरव कभी घोर विस्मय में डालते लोग घटनाएँ दृश्य आदि हमें चुपचाप अनुभव और भावनाओं के एक ऐसे भौतिक देश और अन्तर्देश में ले जाते हैं जिनमें हममें से अधिकतर शायद ही पहले कभी गये हों। यह अनूठा गद्य है जिसमें गद्य और कविता वृत्तान्त और चिन्तन के पारम्परिक द्वैत झर गये हैं और जिसमें होने की मनुष्य होने के रहस्य और विस्मय का निर्मल आलोक अपनी कई मोहक रंगतों में आर-पार फैला हुआ है। —अशोक वाजपेयी
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