फाल्गुनी का वापिस अपने शहर लौटना और तुषार से उसकी मुलाकात उन दोनों को बीते दिनों की यादों के रास्ते ले जाती है। जब वे पहली बार यूनिवर्सिटी में मिले थे वो अजीब सी मुलाकात बातों का सिलसिला और फिर धीरे धीरे वे दोनों किस तरह एक दुसरे के हो गए थे। तुषार स्वभाव से थोड़ा गंभीर और समझदार यूनिवर्सिटी में अपनी थीसिस ख़त्म करने की तरफ बढ़ रहा था वहीं फाल्गुनी अपने घर को छोड़ कर अपने माता पिता से लड़कर तुषार के शहर अपनी थीसिस शुरू करने आयी थी। स्वभाव में वो भी तुषार की ही तरह समझदार थी पर उसमें अब भी थोड़ा सा बच्चो जैसी मासूमियत थी। दोनों ही अपने काम के लिए सजग और समर्पित थे। एक ही प्रोफेसर के मार्गदर्शन में काम करते हुए वे अपनी चाहतों की दुनियां बसा लेते हैं। फाल्गुनी जहाँ अपने सारे फैसले खुद किया करती है वहीं तुषार अपने फैसले लेते समय अपनी माँ को हमेशा ध्यान में रखता है जिसने उसे अकेले ही उस योग्य बनाया। दोनों की जिंदगी में भूचाल तब आता है जब उन्हें एक साथ एक ही जगह से ऑफर आता है। फाल्गुनी अपना सब कुछ दांव पर लगा कर जाने को उत्सुक थी वहीं तुषार अपनी माँ को छोड़ कर नहीं जा सकता था। सब कुछ ठीक चल रहा होता है। पर एक कठिन निर्णय उन्हें दो अलग रास्तों पर ले जाता है जहाँ वे न चाहते हुए भी चल पड़ते हैं। दिन महीने और साल बीत जाते हैं और वो अपनी जिंदगी में व्यस्त हो चुके होते हैं। इस दौरान उनके बीच किसी भी प्रकार का कोई संपर्क भी नहीं रहता। पर जब एक फ़ोन कॉल आने पर लम्बी जुदाई के बाद जब बरसों बाद वे फिर मिलते हैं। फाल्गुनी का किसी काम के सिलसिले में शहर वापिस आना होता है तो वो दोनों फिर उन पुराने दिनों को याद करते हुए फिर समझने की कोशिश करते हैं की क्या हुआ था ? क्या वो रोका जा सकता था? वो दोनों किस तरह एक दुसरे से मिलते हैं उनके बीच क्या बातें होती है। यही इस कहानी को आगे ले जाता है जहाँ वे कुछ हसीन पल साथ बिताते हैं। कई बातों में उलझते सुलझते हुए फिर वापिस अपने रास्तों पर निकल पड़ते हैं।
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