भारतीय समाज में रामायण सामाजिक-पारिवारिक आदर्शों के रूप में प्रतिष्ठित है। भगवान श्री कृष्ण के प्रति अगाध प्रेम भारतीय समाज के रग-रग में व्याप्त है । श्री रामचन्द्र के प्रति उतना की श्रद्धा का भाव हमारे समाज में मानों आदर्शों की बात रामायण से शुरू होकर रामायण पर ही समाप्त होती है। रामायण की इसी खासियत ने मुझे बच्चों के लिए इस कहानी को नाटिका के रूप में प्रस्तुत करने को प्रेरित किया । इसमें आदर्शों की स्थापना को रोचकता के साथ परोसने का प्रयास किया । बच्चों को कविताओं से बड़ा प्रेम होता है सो संवाद के स्थान पर कविता का प्रयोग किया है। नाट्य रूप का चयन इसलिए भी किया कि मंचन का प्रभाव ज्यादा होता है।यद्यपि संपूर्ण रामायण को नहीं प्रस्तुत किया मगर राम के चरित्र के माध्यम से अधिक से अधिक आदर्शों को बच्चों के सामने चित्रित करने का यत्न किया है। श्रवण कुमार एवं भरत भी आदर्श स्थापित करते हैं जिनका प्रसंग इसी निमित जोड़ा है।नाटिका को संक्षिप्त रखा है ताकि बच्चे आसानी से मंचन कर सकें और दर्शक के रूप में समझ भी जायें । बच्चों का स्टेज का डर दूर होता है। निडर और साहसी बने राम-लक्ष्मण को आदर्श मानें । पुरानी संस्कृति एवं इतिहास से रूबरू होने हों । हर पात्र की विशिष्टता उजागर हो यही भरसक प्रयास है । 5 वर्ष से 8-10 वर्ष की आयु के बच्चे लंबे संवाद नहीं बोल पाते अतः ये तरकीब कारगर बनती है।मेरी यह किताब बच्चों तक मर्यादा पुरुषोत्तम राम के गुणों एवं आदर्शों को पहुँचाने का एक साधन है। मुझे उम्मीद है कि बच्चों को इस नाटिका को एवं मंचन में आनंद आएगा और वे उन आदर्शों को अपने जीवन में उतारने को प्रेरित होंगे। यह पुस्तक तमाम बच्चों को समर्पित....
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