प्रस्तावना: - मनुष्य के जीवन की यात्रा जन्म से प्रारंभ होकर मिर्त्यु तक चलती है। इस यात्रा के दौरान मानव विभिन्न पायदानों से होता हुआ गुज़रता है। जैसे - जैसे वह अपने बचपन से प्रौढ़ता की तरफ और फिर वर्द्धा अवस्था की ओर बढ़ता जाता है उसे जीवन के कुछ खटटे-मीठे अनुभव होते जाते हैं। ये अनुभव मनुष्य को उसके परिवार समाज रिश्तेदारों व मित्रों आदि के उसके साथ व्यवहार से प्रभावित हो सकते हैं। सभी का अनुभवपरिकल्पना एवं अवलोकन अलग-अलग हो सकता है। अतः मैने भी अभी तक के जीवन काल में जो कुछ भी अनुभव व् अवलोकन किया है उसको संक्षिप्त रूप में पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करने की मेरी हार्दिक इच्छाशक्ति व् साथ ही पाठकों को कुछ सार्थक सन्देश देने की मेरी भावना ने मुझे यह पुस्तक पद्ध /शायरी के रूप में लिखने को प्रेरित किया है।इस पुस्तक को लिखने में मेरी धर्मपत्नी श्रीमति अनु त्यागी व् पुत्र श्री निखिल कुमार त्यागी का भी पूर्ण योगदान रहा। उनके सहयोग के बिना यह कार्य पूर्ण करना लगभग असंभव होता। इसमें प्रस्तुत किये गये विचार पूर्णतः स्वं के हैं और स्वलिखित हैं। मै आशा करता हूँ कि मेरा यह छोटा सा प्रयास पाठकों को रुचिकर लगेगा। सधन्यवाद! आपका शुभचिंतक! अजय कुमार त्यागी
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