मैं जब मैं कहूँ तो मैं नहीं मैं मरूँ तो देह मरे मैं नहीं। यही बात है जो मुझे लिखावट की तरफ आकर्षित करती है। इंसान जीवन भर क्या कुछ करता है पर मृत्यु के पश्चात ससफफ कुछ ददनों तक ही याद ककया जाता है इसलिए लिखता हूँ के िोग मुझे नहीं तो िेख याद रखेंगे यही कागज़ जो जन्म और मरण का प्रमाण देता है। मुझे भी कोई प्रमाण देगा। बहुत कुछ है मन में पर मैं कह नहीं पाता जो कहना है वो शब्द हिक तक आते है पर जुबान उन्हें कैद कर िेती है। ये कर्वताएूँ ये िेख यही एक जररया है जहाूँ कोई रूकावट नहीं मन की बातें यही होती है। ददि और ददमाग हाथों के जररए अपनी मंशा यही रचते है। इंसान कभी अकेिा नहीं भगवान उसके साथ है और दफर भी अकेिा िगे तो किम और कोरा कागज सबके पास है। यही सोचकर कभी मैं रूका नहीं कभी लिखना है ससफफ इसीलिए लिखा नहीं इन लिखावटो में सजया है तभी कुछ लिखा है। अन्ततः यह सारी बातें जो इस ककताब के पन्नो में लिपटी है ये वही है जो डरपोक सा मैं कह ना सका इसलिए ये 'मेरी बातों का समंदर' है।
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