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About The Book

आपराधिक रेकॉर्ड कॉलेज खत्म होने तक नीरज बधवार ने जिंदगी में सिर्फ 3 ही काम किए-टी.वी. देखना क्रिकेट खेलना और देर तक सोना। ग्रेजुएट होते ही उन्हें समझ आ गया कि क्रिकेटर मैं बन नहीं सकता सोने में कॅरिअर बनाया नहीं जा सकता बचा टी.वी.; जो देखा तो बहुत था मगर उसमें दिखने की तमन्ना बाकी थी। यही तमन्ना उन्हें दिल्ली घसीट लाई। जर्नलिज्म का कोर्स करने के बाद छुट-पुट नौकरियों में शोषण करवा वो टी.वी. में एंकर हो गए। एंकर बन परदे पर दिखने का शौक पूरा किया तो लिखने का शौक चढ़ गया। हिम्मत जुटा एक रचना अखबार में भेजी। उनके सौभाग्य और पाठकों के दुर्भाग्य से उसे छाप दिया गया। इसके बाद दुस्साहस बढ़ा तो उन्होंने कई अखबारों में रायता फैलाना शुरू कर दिया।सिर्फ अखबार और टी.वी. में लोगों को परेशान कर दिल नहीं भरा तो ये सोशल मीडिया की ओर कूच कर गए। अपने वन लाइनर्स के माध्यम से लाखों लोगों को ट्विटर और फेसबुक पर अपने झाँसे में ले चुके हैं। नीरज पर वनलाइनर विधा का जन्मदाता होने का इल्जाम भी लगता है और ऐसा इल्जाम लगाने वालों को वो अलग से पेमेंट भी करते हैं अपना ही परिचय थर्ड पर्सन में लिखने की धृष्टता करने वाले नीरज वर्तमान में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह में क्रिएटिव एडिटर के पद पर कार्यरत हैं जहाँ Fake it India कार्यक्रम के जरिए लोगों को बुरा व्यंग्य परोसने का काम बखूबी अंजाम दे रहे हैं। जनता का भी टेस्ट इतना खराब है कि अब तक 20 करोड़ लोग इन विडियोज को देख अपनी आँखें फुड़वा चुके हैं। इनकी पहली किताब हम सब Fake हैं को भारत में आई इंटरनेट क्रांति का श्रेय दिया जाता है। उसे पढ़ते ही जनता का लिखने-पढ़ने से भरोसा उठ गया और वो इंटरनेट की ओर कूच कर गई। नीरज की यह दूसरी पुस्तक जुल्म की इस लंबी दास्तान का एक और किस्सा है
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