जयप्रकाश मानस अपनी लघुकथाओं में संयत होकर ‘संवाद’ का निर्वाह बहुत कुशलता से और सहज रूप में करते हैं। इनकी कथा के संवादों में एक-एक शब्द सोद्देश्य और अर्थपूर्ण होता है। विषय एवं शीर्षक की भेड़चाल से हटकर आपकी लघुकथाओं के विषय तो नए होते ही हैं प्रस्तुति में भी नयापन होता है। इनकी भाषा विषयवस्तु और पात्र की मनोदशा का अनुगमन करती हुई चलती है। मानस जी की रचना में सन्तुलित और सार्थक संवाद से उपजी गहन संवेदना किसी भी साधारण विषय को प्राणवन्त कर देती है। जिजीविषा व्यक्ति को लीक से हटकर कार्य करने की प्रेरणा देती है। जो लीक से हटकर चलता है उसे संघर्ष भी करना पड़ता है। मानस की लघुकथाओं के पात्र जुझारू हैं। लेखक किसी कमज़ोर पात्र को उपदेशों से शक्ति प्रदान नहीं करता_ बल्कि उसके भीतर निहित शक्ति का ही आहवान करता है। ‘पत्थरों की पंचायत’ का यह सूत्र वाक्य - ‘असली जाति तो कर्म होती है। पानी ने उन्हें बहाया नहीं_ बल्कि जोड़कर नया अर्थ दिया। अब वे अलग थे_ पर अभिन्न भी जैसे पंचायत के सदस्य - भिन्न_ पर विचार से एक ही प्रयोजन।’ --रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
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