सामाजिक यथार्थवाद व वर्तमान परिदृश्य की बुनियाद पर टिका महेंद्र भीष्म का उपन्यास *बैरी* जीवन के अनेक मोड़ अनेक उतार-चढ़ाव के ग्राफ को दर्शाता हुआ मानवीय संवेदना को प्रगाढ़ करता है । मानवीय मूल्यों की वकालत करता हुआ यह उपन्यास भाषा और शिल्प की दृष्टि से कसा हुआ है। इसमें अंकित घटनाएं प्रति घटनाएं बहुत हद तक मानव की मनोदशा निर्धारित करती हैं और भविष्य की दिशा सुझाती हैं। भीष्मजी ने अपने इस उपन्यास में कोरोना काल को समेटते हुए वर्तमान समय की तल्ख सच्चाइयों को बेहद खूबसूरती से पिरोया है। सम सामयिक चित्रण के साथ ही वह व्यक्ति के विभिन्न मनोभावों का रोचक ढंग से विश्लेषण व्यंजित करने में सफल हुए हैं। अगर साहित्य जिंदा रहने की ताकत पाने के लिए पढ़ा जाता है तो यह ''उपन्यास'' एक उम्दा मिसाल है। उपन्यास में छिपे मर्म को समझते हुए जीवन दर्शन से भरी कितनी ही पंक्तियों को संचित किया जा सकता है। अपने अन्य उपन्यासों की तरह यह उपन्यास भी स्वयं को पढ़ा ले जाने का माद्दा रखता है।
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