रामायण महाकाव्य भारतीय संस्कृति का मूल स्रोत माना जाता है। साहित्यिक दृष्टि से यह विश्व साहित्य की अनमोल रचना है। इसपर धारावाहिक और फ़िल्मों का भी निर्माण हो चुका है। विश्व की अनेक भाषाओं में इस कथा का अनुवाद हो चुका है। रामायण में तत्कालीन समाज के रीतिरिवाजों और शासन पद्धति का वर्णन किया गया है। शाश्वत मूल्यों के विकास में रामायण की महत्ता आज भी उतनी है जितनी प्राचीनकाल में थी। बालक-बालिकाओं के सर्वांगीण विकास और शाश्वत मूल्यों की महत्ता के कारण बाल रामायण की रचना की गई है। बाल रामायण में कथा को सरल सरस रूप में इस तरह प्रस्तुत किया गया है कि किशोरवय के बालक-बालिकाएँ सहज ढंग से इसे प्राप्त कर सकें। इसमें स्थान-स्थान पर तुलसीदास कृत चौपाइयाँ भी हैं ताकि भाषा में रुचि जाग्रत हो। बाल रामायण की रचना बालकों के जीवन के सर्वांगीण विकास और शाश्वत जीवन-मूल्यों को प्रेरित करने के उद्देश्य से की गई है। जैसे — भातृ-प्रेम त्याग सत्य प्रतिज्ञा-पालन आज्ञा-पालन आदि। बाल रामायण में सर्वप्रथम वर्णन है कि महर्षि वाल्मीकि के मुख से निकला श्लोक —मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः... ही रामकथा की उत्पत्ति का कारण बना। बाल रामायण में वाल्मीकि कृत रामायण के श्लोक और तुलसीदास कृत चौपाइयाँ भी सम्मिलित की गई है। इसे छह कांडों — बाल कांड अयोध्या कांड अरण्य कांड किष्किंधा कांड सुंदर कांड और युद्ध कांड में विभक्त किया गया है। सुखद अंत के लिए उत्तर कांड को शामिल नहीं किया गया। बच्चों की सुविधा के लिए प्रत्येक कांड से संबंधित प्रश्न तथा शब्दार्थ भी ;आपको कितना याद है शीर्षक के अंतर्गत दिए गए है तथा रामायण के मुख्य पात्रों का परिचय पुस्तक के अंत में बताया गया है।.
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