BALAM KALKATTA
Hindi

About The Book

हिंदी गद्य के कथित सौन्दर्यवाद और प्रकारांतरवाद से सर्वाधिक हानि पाठकीयता की हुई है। भाषा की इस आत्मरति ने पाठकीय क्षुधा मनुष्य के सरोकारों और समाज की अपेक्षाओं को हाशिए पर ला खड़ा किया है। ऐसे में इस तरह के लेखन को स्वान्तःसुखाय कहना भी कदाचित उपयुक्त नहीं होगा। अलबत्ता आत्ममुग्धता की श्रेणी में यह लेखन अवश्य रखा जाएगा। कथालेखन के इस आसन्न संकट को जो गिनेचुने नाम आज चुनौती दे रहे हैं उनमें एक प्रमुख नाम गीताश्री का भी है। उनकी कहानियों में भाषा का छलावापूर्ण वैभव भले नहीं दिखता हो लेकिन कथानक की विश्वसनीयता और अपने जैसे प्रतीत होते पात्रों के लम्स को सहज महसूस किया जा सकता है।
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