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About The Book
Description
Author
जंगल हमारा आबाई वतन है। हज़ारों बरस पहले जब ज़मीन पर इन्सानी ख़ून और बारूद की लकीरें नहीं खींची गई थीं जब न मुल्क थे न शह्र थे न रियासतें थीं तब स़िर्फ ज़मीन थी जंगल थे और हम थे। जंगल हमारी रगों में ख़ून के साथ बह रहे हैं वो हमें पुकारते हैं अपनी तख़रीब की फ़रियाद करते हैं लेकिन हम ये आवाज़ अनसुनी कर देते हैं। शकील आज़मी ने ये आवाज़ सुनी है और अपने लफ़्ज़ों में इस आवाज़ की तस्वीर भी बनाई है और तस्वीर को गुफ़्तगू का हुनर भी अता किया है। -जावेद अ़ख्तर