पुस्तक के बारे में “बापू की स्मार्ट सिटी” पच्चीस रचनाओं का संग्रह है। इन रचनाओं के सरोकार सामाजिक राजनीति आर्थिक सांस्कृतिक... हैं ऐसा मेरा मानना है। नए जमाने ने जीने के लिए नई शैली विकसित की है जिसकी वजह से हमारे संघर्षों ने हमें मजबूत तो बनाया है...पर साथ ही हम अमानवीय भी बड़े स्तर पर हुए हैं। और पिछले दो सालों में तो महामारी ने हमारे आपसी संबंधों को एक बार फिर से बनाया और बिगाड़ा है। आदमी ने आदमी को शिद्दत से बचाया भी है और मारा भी है। इन दिनों स्मार्ट सिटियों का चलन आया है। सारा कुछ बदलने को है...यहाँ तक आदमी भी ऐसा पुर्जा बनने जा रहा है जिसमें से आदमीयत पूरी तरह से निकाल बाहर की गई हो। सारा कुछ बिजनिस-ओरिएंटेड। और सिर्फ बिजनिस -ओरिएंटेड। ऐसी कोई फील्ड नहीं है जो व्यवसायिक नहीं हुई हो। राजनीति धर्म साहित्य शिक्षा... इतने व्यवसायिक हो गए है कि तुलना में बाजार बौना हो गया है। पच्चीतस रचनाएं हैं जो प्रकाशित हैं। मैंने तो इन्हें व्यंग्य माना है आप भी इन्हें व्यंग्य माने तो मेरा लिखना सार्थक होगा।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.