‘बारिश बाजा बजाती है’ संग्रह को अन्य प्रेम-कविता संग्रहों से अलग इसलिए भी रखा जा सकता है कि उसमें प्रेम का नाद इस तरह बजता है कि जीवन-तरंग से सराबोर प्रेम हमारे समक्ष जीवंत हो उठता है। शहंशाह आलम के इस काव्य संग्रह की कविताओं में प्रेम के विभिन्न रूपों का सुंदर शब्दांकन है चाहे वह प्रेम-पश्चात का अवसाद हो या प्रेम में होते समय की काव्य-चेष्टाएँ। यहाँ प्रेम छत पर लगा सौंफ़ का पौधा भी है तो बारिश की बूँदें भी जो विरह में तन-मन आग भरती हैं। यहाँ प्रेम हावड़ा का पुल भी है और कोई शहतूत का पेड़ भी। इन कविताओं का प्रेम सीमारहित प्रेम है जो ग़ज़ा भी पहुँच जाता है और कलकत्ता भी। ये कविताएँ झील का ठहरा पानी भी हैं और समुद्र भी।
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