प्रस्तुत पुस्तक ‘सामाजिक विज्ञानों में अनुसंधान प्रविधियाँ’ अपने आप में अनूठी है। हिन्दी माध्यम में प्रायः ‘सामाजिक अनुसन्धान’ के नाम से समाजशास्त्र एवं मनोविज्ञान विषय में कुछ पुस्तकें उपलब्ध हैं। उल्लेखनीय है कि उपलब्ध पुस्तकों में से अधिकांश अंग्रेजी का अनुवाद हैं फलतः विद्यार्थियों की शोध सम्बन्धी समस्याएँ घटने की बजाय बढ़ती जाती हैं। ऐसे में इस पुस्तक की प्रासंगिकता स्वतः सिद्ध है। यह पुस्तक उच्च शिक्षा के लिए रामबाण साबित होगी। शोध सिर्फ पीएच.डी. की उपाधि ही नहीं है। लघु शोध शोध–पत्र शोध प्रस्ताव (माइनर और मेजर) सेमिनार वर्कशॉप कांफ्रेंस सभी की रूप-रेखा तैयार करना शोध का अनिवार्य पहलू है। इन सभी विषयों पर प्रस्तुत पुस्तक में सरल भाषा में सोदाहरण व्याख्या की गयी है। कुछ बड़े विश्वविद्यालयों को छोड़ दिया जाय तो उत्तर भारत के छात्रों को इन सभी चीजों के लिए संघर्ष करना पड़ता है एवं व्यावहारिकता तो यह है कि जानकारी के अभाव में उनका आर्थिक शोषण भी आरम्भ हो जाता है। सन्दर्भ ग्रन्थ सूची शोध-पत्र और रिसर्च प्रोजेक्ट की जानकारी नहीं होने के कारण ये कार्य उन्हें जटिल लगने लगते हैं। इस समस्या का समाधान पुस्तक में विस्तार से किये गए विभिन्न पहलुओं की तर्कपूर्ण चर्चा से आसानी से होगा। साधारणतः छात्र ‘परिचय एवं शोध-सारांश’ के विषय को नहीं समझ पाते हैं। शोध के विषय चयन के बाद साहित्य की समीक्षा समझ से परे लगने लगता है जिससे रिसर्च गैप की प्राप्ति में कठिनाई होती है। इस पुस्तक में इन विषयों पर अलग से अध्याय बनाकर वृहत चर्चा की गई है। यह पुस्तक बहु–विषयक है इसका उपयोग सामाजिक विज्ञान के सभी विषयों के लिए लाभकारी होगा। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के 4 वर्षीय स्नातक कोर्स में एक विषय के रूप में इसको जगह दी गई है। वैसे छात्र जो स्नातक के बाद सीधे शोध के लिए प्रवेश चाहेंगे उन्हें शोध से सम्बंधित जानकारी इस पुस्तक से प्राप्त होगी। आँकड़ा प्राप्त करना एवं आँकड़ों का विश्लेषण कर उससे शुद्ध निष्कर्ष निकालना दोनों दो चीजें हैं। प्रस्तुत पुस्तक में प्राथमिक एवं द्वितीयक आँकड़ा में अंतर के साथ-साथ द्वितीयक आँकड़ा विश्लेषण की विधि को अलग से एक अध्याय के रूप में रखा गया है। सामाजिक विज्ञान में शोध प्राथमिक आँकड़े आधारित हो इसके अभिप्रेरण के लिए तथ्य संकलन की विधि- अवलोकन प्रश्नावली अनुसूची और साक्षात्कार को अलग–अलग अध्यायों में रखा गया है। चूँकि सामाजिक विज्ञान के अध्ययन का विषय-वस्तु ‘मानव-व्यवहार’ है जिसपर पूर्ण नियंत्रण नहीं किया जा सकता। प्राकृतिक विज्ञानों के स्वरूप से इसका स्वरूप भिन्न होना स्वाभाविक है जिसमें वस्तुनिष्ठ अध्ययन करना एक बड़ी चुनौती है। वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के लिए अलग से एक अध्याय पुस्तक में रखा गया है।सामाजिक विज्ञान की प्रकृति के अनुरूप शोध को व्यावहारिक रूप देने के क्रम में उत्पन्न चुनौतियों का समाधान समग्रता में प्रस्तुत किया गया है। उपकल्पना सत्यापन से लेकर शोध विधि को विस्तार से प्रस्तुत कर स्वरूपगत जटिलताओं का समाधान पुस्तक में उपलब्ध है।
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