बेबाक हूँ मैं विचारों में आग लिए फिरती हूँ |मत समझना कमजोर मुझे ऐसा हौसला साथ लिए फिरती हूँ |विनीता एक्कापरिंदा हूँ मैं पूरा आसमाँ जिद मैं रखती हूँ |बेबाक़ हूँ मैं जुबाँ पर सच्चाई व इरादों में मंज़िल रखती हूँ ।नेहा मंगलानीज़ब मंज़िल पाने की जो ठान लेता है बंदा |बनना पड़ता है उसे इरादों से बेक़ाब परिंदा |✍️ शेख अहमद जमाल मंसूरीज़मी पर पाँव हैं और आसमान तकता है |आत्मविश्वास यूँ ही आँखों में चमकता है |निहारिका सिंह
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