BEBAK PARINDA


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About The Book

बेबाक हूँ मैं विचारों में आग लिए फिरती हूँ | मत समझना कमजोर मुझे ऐसा हौसला साथ लिए फिरती हूँ | विनीता एक्का परिंदा हूँ मैं पूरा आसमाँ जिद मैं रखती हूँ | बेबाक़ हूँ मैं जुबाँ पर सच्चाई व इरादों में मंज़िल रखती हूँ । नेहा मंगलानी ज़ब मंज़िल पाने की जो ठान लेता है बंदा | बनना पड़ता है उसे इरादों से बेक़ाब परिंदा | ✍️ शेख अहमद जमाल मंसूरी ज़मी पर पाँव हैं और आसमान तकता है | आत्मविश्वास यूँ ही आँखों में चमकता है | निहारिका सिंह
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