Best Acharya Chaturen Novels Hindi :Vaishali Ki Nagarvadhu (वैशाली की नगरवधू)+ Vayam Rakshamah (वयं रक्षाम:) +Hridaya Ki Pyas (हृदय की प्यास)


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This combo product is bundled in India but the publishing origin of this title may vary.Publication date of this bundle is the creation date of this bundle; the actual publication date of child items may vary.सर्वाधिक प्रसिद्ध उपन्यास वयं रक्षामः का मुख्य पात्र रावण है न कि राम। इसमें रावण के चरित्र के अन्य पक्ष को रेखांकित करते हुए उसको राम से श्रेष्ठ बताया गया है। हिंदुस्तान की आर्य संस्कृति पर इस पुस्तक में कुछ इस तरह आचार्य चतुरसेन प्रकाश डालते हैं- उन दिनों तक भारत के उत्तराखण्ड में ही आर्यों के सूर्य-मण्डल और चन्द्र मण्डल नामक दो राजसमूह थे। दोनों मण्डलों को मिलाकर आर्यावर्त कहा जाता था। उन दिनों आर्यों में यह नियम प्रचलित था कि सामाजिक श्रंखला भंग करने वालों को समाज-बहिष्कृत कर दिया जाता था। दण्डनीय जनों को जाति-बहिष्कार के अतिरिक्त प्रायश्चित जेल और जुर्माने के दण्ड दिये जाते थे। प्रायः ये ही बहिष्कृत जन दक्षिणारण्य में निष्कासित कर दिये जाते थे। धीरे-धीरे इन बहिष्कृत जनों की दक्षिण और वहां के द्वीपपुंजों में दस्यु महिष कपि नाग पौण्ड द्रविण काम्बोज पारद खस पल्लव चीन किरात मल्ल दरद शक आदि जातियां संगठित हो गयी थीं। पुस्तक के अनुसार रावण ने दक्षिण को उत्तर से जोड़ने के लिए नयी संस्कृति का प्रचार किया। उसने उसे रक्ष-संस्कृति का नाम दिया।‘हृदय की प्यास’ आचार्यजी का अत्यंत रोचक उपन्यास है। यह उपन्यास ऐसे युवक-युवतियों की सरस कथा है जिसमें वे वासनाओं की ओर झुकते हैं और फिर भावना तथा कर्तव्य की पहेली को सुलझाने का प्रयास करते रहते हैं। यह प्रयास ऐसी कथा बुनता चला जाता है कि पाठक बंधता चला जाता है। प्रारंभ से अन्त तक अत्यंत कौतूहलपूर्ण उपन्यास जिसे अपने संपूर्ण रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।किसी मनुष्य के हृदय में जब प्यास-सी उठती है तो अजीब तरह की बेचैनी और छटपटाहट होने लगती है। मन चंचल होने लगता है और इसी के साथ शुरू होता है बहकना-भटकना। आचार्य जी ने इसी मनोवैज्ञानिक सत्य को रोचक ढंग से ‘हृदय की प्यास’ की कथा में मोती की तरह पिरोया है। यह उपन्यास युवा मन को समझने का भी प्रयास करती है।. About the Author आचार्य चतुरसेन शास्त्री का जन्म 26 अगस्त 1891 को भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बुलंदशहर जिले के एक छोटे से गाँव औरंगाबाद चंडोक (अनूपशहर के पास) में हुआ था। उनके पिता पंडित केवाल राम ठाकुर थे और माता नन्हीं देवी थीं। उनका जन्म का नाम चतुर्भुज था। अपनी प्राथमिक शिक्षा समाप्त करने के बाद उन्होंने राजस्थान के जयपुर के संस्कृत कॉलेज में दाखिला लिया जहाँ से उन्होंने वर्ष 1915 में आयुर्वेद और शास्त्री में आयुर्वेद की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आयुर्वेद विद्यापीठ से आयुर्वेदाचार्य की उपाधि भी प्राप्त की।.हिन्दी भाषा के महान उपन्यासकार आचार्य चतुरसेन शास्त्री की रचना ‘वैशाली की नगरवधू’ वह उपन्यास है जिसकी गिनती हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ उपन्यासों में की जाती है। अपने इस उपन्यास के बारे में स्वयं आचार्य जी ने कहा था मैं अब तक की सारी रचनाओं को रद्द करता हूँ और ‘वैशाली की नगरवधू’ को अपनी एकमात्र रचना घोषित करता हूँ। यह उपन्यास भारतीय जीवन का जीता-जागता खाका है। उपन्यास की कहानी का परिवेश ऐतिहासिक और सांस्कृतिक है जो बौद्ध काल से जुड़ी हुई है। इसमें तत्कालीन लिच्छिवि संघ की राजधानी वैशाली की पुरावधू ‘आम्रपाली’ को प्रधान चरित्र के जरिए उस युग के हास-विलासपूर्ण सांस्कृतिक वातावरण को उकेरने की कोशिश की गयी है। वस्तुतः यह उपन्यास मगध और वैशाली के रूप में साम्राज्य और गणतंत्र के टकराव को रूप देता है। इसमें शास्त्री जी वैशाली के पक्षधर हैं। उनका मानना है कि राजतन्त्र और तानाशाह की जीत दुश्मन को पूरी तरह बरबाद कर देती है जबकि जनप्रतिनिधियों और लोकतन्त्र की जीत उतनी हिंसक नहीं होती।
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