Best Of Kaka Hatharasi

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About The Book

हास्यऋषि काका हाथरसी ने न केवल हिंदी कवि सम्मेलन के मंच पर हास्य को स्थापित किया बल्कि उसको बहुत ऊँचा स्थान भी दिलाया। लोकप्रियता के शिखर पुरुष काका ने अपनी तुकांत एवं अतुकांत कविताओं के साथ अपने हास्य में जीवन की व्यापक विसंगतियों को समेटा। काकी के माध्यम से उन्होंने नारी को गरिमा प्रदान की। ‘नाम बड़े और दर्शन छोटे’ या ‘लिंग भेद’ जैसी कविताएँ उनकी गहरी निरीक्षण क्षमता और खोजपूर्ण दृष्टि की परिचायक हैं। प्रस्तुत संकलन में उनकी वे कविताएँ हैं जो कविता प्रेमियों के हृदयपटल पर राज करती आई हैं। यों काका की श्रेष्ठ कविताएँ एक संकलन के लिए छाँटना कठिन कार्य था लेकिन इन कविताओं ने हास्य का इतिहास बनाया है। निर्मल हास्य द्वारा समाज में कैसे सुधार किया जा सकता है ये कविताएँ हमें हँसाती हैं और यही सब सिखाती हैं।. About the Author जन्म: 18 सितंबर 1906 को हाथरास में। काका हाथरसी का मूल नाम प्रभुलाल गर्ग था। मात्र 29 वर्ष की अवस्था में काका की प्रथम कविता ‘गुलदस्ता’ मासिक के मुखपृष्ठ पर सन् 1933 में प्रकाशित हुई। काका ने सन् 1935 में ‘संगीत’ मासिक प्रकाशित करने की योजना बनाई। रचनासंसार: ‘दुलत्ती’ ‘काका के कारतूस’ ‘काका के प्रहसन’ ‘काकदूत’ ‘काका की फुलझडि़याँ’ ‘काका के कहकहे’ ‘महामूर्ख सम्मेलन’ ‘काका की काकटेल’ ‘चकल्लस’ ‘काकाकोला’ ‘हँसगुल्ले’ ‘काका के धड़ाके’ ‘कहँ काका कविराय’ ‘फिल्मी सरकार’ ‘जय बोलो बेईमान की’ ‘नोकझोंक काकाकाकी की’ ‘काकाकाकी के लवलैटर्स’ ‘हसंतबसंत’ ‘योगा एंड भोगा’ ‘काका की चौपाल’ ‘यार सप्तक’ ‘काका का दरबार’ ‘काका के चुटकुले’ ‘हँसी के गुब्बारे’ ‘काका तरंग’ ‘काका शतक’ ‘मेरा जीवन ः एवन’ ‘मीठीमीठी हँसाइयाँ’ ‘काका की महफिल’ ‘खिलखिलाहट’ ‘काका के व्यंग्यबाण’। स्मृतिशेष: करोड़ों व्यक्तियों को हास्य से सराबोर करनेवाले काकाजी बड़े शांत भाव से 18 सितंबर 1995 को हमसे बिदा हो गए; किंतु उनका लेखन हमेशाहमेशा उनके प्रशंसकों के मन में उनकी स्मृतियाँ ताजा रखेगा। प्रसिद्ध युवा चित्रकार शिवाशीष शर्मा की 18 पुस्तकें कार्टूंस पर तथा 3 पुस्तकें पेंसिल आरेखन पर छप चुकी हैं। इनको चित्रकला संगम नई दिल्ली द्वारा ‘वर्ष का सर्वोत्तम कार्टूनिस्ट’ का पुरस्कार सन् 2007 में मिल चुका है।.