Bhagini Nivedita Aur Bhartiya Navjagran


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About The Book

भगिनी निवेदिता (मूल नाम मार्गरेट एलिजाबेथ नोबल) नवंबर 1895 में लंदन में लेडी मार्गेसन के यहाँ पहली बार स्वामी विवेकानंद से मिली थीं। वहाँ उन्होंने स्वामीजी का उद्बोधन सुना। वे स्वामीजी की सत्यनिष्ठा विद्वत्ता अप्रतिम मेधाशक्ति प्रभावी वक्तव्य तथा आध्यात्मिक अनुभूतियों की गहराई आदि गुणों से अतिशय प्रभावित हुईं। किसी शिशु की सोच-समझ और मानसिक संरचना में परिवर्तन करना उतना कठिन नहीं है पर मार्गरेट नोबल जैसी उच्च शिक्षिता परिपक्व बुद्धि से युक्त मेधावी दृढ़ निश्चयी ईसाई धार्मिक परंपराओं में पली-बढ़ी प्रबल आलोचनात्मक और तार्किक बुद्धि से युक्त महिला के व्यक्तित्व में अचानक परिवर्तन हो जाना तो असंभव ही था पर स्वामीजी के पुनीत सामीप्य ने उनकी जीवनधारा को ही बदल दिया। उन्होंने स्वामीजी का महान् कार्य करने के लिए अपने व्यक्तित्व का विलोप कर स्वामीजी के हाथों संत बनना स्वीकार किया। 25 मार्च 1898 को स्वामीजी ने उन्हें ब्रह्मचर्य की दीक्षा दी और उनका नया नामकरण ‘निवेदिता’ किया। इस प्रकार उन्होंने अपना निवेदिता नाम सार्थक किया; वे सही अर्थों में स्वामी विवेकानंद की मानस पुत्री बन गईं। विश्वकवि रवींद्रनाथ टैगोर ने उनके महत्त्व की अनुभूति कर उन्हें ‘लोकमाता’ की उपाधि से विभूषित किया एवं अपनी कृतज्ञ श्रद्धांजलि अर्पित की। भगिनी निवेदिता और भारतीय पुनर्जागरण में उनकी महती भूमिका पर प्रकाश डालने वाली एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक।
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