Bhagwati Mauj

About The Book

असल में मौज तो मौज ही होती है और दुख तो दुख ही होता है। हम कोई न कोई बहाना चाहते हैं- मस्ती का या दुखड़े का। यदि यह निर्णय ले लिया कि दुखी ही रहना है तो बहुत बहाने मिल जाते हैं। घर के कारण रिशतेदारों के कारण राजनीति के कारण अपने कारण या और कुछ नहीं मिले तो आदत के कारण भी आदमी दुखी हो ही लेता है। इसी प्रकार यदि मस्त रहने का निर्णय ले लेते हैं तो उसके लिए भी हम लोग कारण ढूंढते हैं। लेकिन यहाँ एक खास बात ध्यान देने की है कि मस्ती में जब रहते हैं तो इसके लिए किसी विशेष वस्तु या परिस्थिति की आवश्यकता नहीं होती। यही मस्त योग है। इस मौज का आनंद भागवत के पन्ने पन्ने में बिखरा हुआ है।
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