भगवती तत्त्वप्रस्तुत ग्रन्थ पराम्बा भगवती के तात्त्विक स्वरूप विमर्श की मूल भावना से शब्दांकित है। देवी परम अव्यय सत्ता की अनन्त सृजनशक्ति और अलौकिक मातृरूप हैं। स्त्रीतत्त्व रूप में सर्वव्यापी चेतना का सर्वोच्च आभास हैं। वह सत्ता की दृश्टि से ‘सत्य’ नैतिक नियमन की दृश्टि से ‘ऋत’ और आनन्द की दृश्टि से ‘मधुमान’ हैं। उनका ऋत स्वभाव अखण्ड चैतन्य रूप है। देवी की सच्चिदानन्द ब्रह्म स्वरूपता श्रुति सम्मत है। प्रायः सभी आचार्यों ने उन्हें आत्मतत्त्व या चेतन पुरुश के रूप में स्वीकारा है। जगत् बीज रूप में वह महामाया मूलप्रकृति या आदिशक्ति हैं। देवी की माया आदि स्वरूपों में उपासना पर कतिपय आपत्तियों और वैविध्यता युक्त पक्षों का पुस्तक में युक्ति संगत विवेचन हुआ है। वहीं देवी की प्रकट विभूतियों दशमहाविद्या एवं शक्तिपीठों से सम्बन्धित शंकाओं के भीसमाधान का प्रयास किया गया है। तत्त्व बोध पूर्वक भगवती स्तवन आत्म जागृति (‘आत्मानं विद्धि’) का सुअवसर प्रदान करता है। यह अध्ययन भगवती के यथार्थ स्वरूप को प्रमाणिकता के साथ उद्घाटित करने में समर्थ होगा ऐसा दृढ़ विश्वास है।
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