भक्ति - आन्दोलन और भारतीयता ' नामक पुस्तक के अन्तर्गत मेरे अपने विविध शोध - आलेखों को निखिल के निर्देशन में संग्रहित किया गया है। इस पुस्तक के केन्द्र में विद्यार्थी ही रहे हैं। विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर ही इस पुस्तक को मूर्तरुप दिया गया है। भारतीय साहित्य में भक्ति - आन्दोलन की महत्त्वपूर्ण भूमिका की प्रासंगिकता को रेखांकित किया गया हैजिससे विद्यार्थियों के समक्ष मध्यकालीन समाज का चित्र आँका जा सके। सर्वविदित है कि भक्ति - आन्दोलन में कर्म ज्ञान भक्ति और प्रेम रुपी भक्ति - भावनाओं की जिस भक्ति - धारा को चतुर्दिक दिशाओं में प्रवाहित किया गया था उन सबकी उद्गम स्थली हिमालय की गोद से निकली गंगोत्री ही थी। संस्कृत साहित्य का पूरे भारोपीय परिवार में भावानुवाद बहुत ही सहज तरीके से किया गया और पूरे विश्व के समक्ष अंध- साम्राज्यवाद की चुनौतियों का डटकर मुकाबला करने के लिए सनातनी परम्परा व संस्कृति की वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना रुपी ढ़ाल प्रस्तुत किया गया। अतः वर्तमान संदर्भ में भारतीय साहित्य के माध्यम से भक्ति - आन्दोलन में भारतीयता के आवश्यक गुण की प्रासंगिकता बताना ही इस पुस्तक का एक मात्र उद्येश्य है।
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