भारत-भारती-: मैथिलीशरण गुप्त की सर्वाधिक प्रचलित कृति है। यह सर्वप्रथम संवत् 1969 में प्रकाशित हुई थी और अब तक इसके पचासों संस्करण निकल चुके हैं। एक समय था जब 'भारत-भारती' के पद्य प्रत्येक हिन्दी-भाषी के कंठ पर थे। गुप्त जी का प्रिय हरिगीतिका छन्द इस कृति में प्रयुक्त हुआ है। भारतीय राष्ट्रीय चेतना की जागृति में इस पुस्तक का हाथ रहा है। यह काव्य तीन खण्डों में विभक्त<br><br>(1) 'अतीत' खंड (2) 'वर्तमान' खंड (3) 'भविष्यत' खंड । 'अतीत' खंड में भारतवर्ष के प्राचीन गौरव का बड़े मनोयोग से बखान किया गया है। भारतीयों की वीरता आदर्श विद्या-बुद्धि कला-कौशल सभ्यता-संस्कृति साहित्य- दर्शन स्त्री-पुरुषों आदि का गुणगान किया गया है। 'वर्तमान' खंड में भारत की वर्तमान अधोगति का चित्रण है। इस खंड में कवि ने साहित्य संगीत धर्म दर्शन आदि के क्षेत्र में होनेवाली अवनति रईसों और उनके सपूतों के कारनामें तीर्थ और मन्दिरों की दुर्गति तथा स्त्रियों की दुर्दशा आदि का अंकन किया है। 'भविष्य' खंड में भारतीयों को उद्बोधित किया गया है तथा देश के मंगल की कामना की गई है
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