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About The Book
Description
Author
पुराणों में दिग्विजयी सम्राटों के अनेक प्रमाण देखे जा सकते हैं। विभिन्न रूपों में आज भी उनके जीवित प्रमाण भारत सहित विश्वभर में बिखरे पड़े हैं। इनकी गौरव गाथाएँ जन-सामान्य की आस्था के केंद्र हैं जो पग-पग पर उनका मार्गदर्शन भी करती हैं।इस पुस्तक में भगवान बुद्ध के बाद के उन विशिष्ट भारतीय सम्राटों की चर्चा की गई है जिनकी गौरव-गाथाओं ने काल के कपाल पर अनेक गरिमामय अभिलेख अंकित किए हैं। उनकी दिग्विजयी सेनाओं ने भारत की सीमाओं के बाहर जाकर भी विजय के अनेक कीर्तिमान स्थापित किए हैं। इन विजयों में धम्म विजय महत्त्वपूर्ण है। सम्राट् अशोक और कनिष्क जैसे सम्राटों ने इसमें अग्रणी भूमिका निभाई। विक्रमादित्य चंद्रगुप्त मौर्यसमुद्रगुप्त चंद्रगुप्त द्वितीय हर्षवर्धन बप्पा रावल ललितादित्य मिहिर भोज महाराणा प्रताप महाराणा साँगा परमार भोज अनंगपाल राजेंद्र चोल प्रथम हेमचंद्र विक्रमादित्य व सम्राट् कृष्णदेव राय की अपनी-अपनी गौरव गाथाएँ हैं।इन्होंने जहाँ अपने भुजबल से संपूर्ण भारतवर्ष को एकता के सूत्र में बाँधने काप्रयास किया वहीं इनके घोड़ों के टापों की धमक पेकिंग से लेकर गांधार तक अनुभव की गई।सम्राट् राजेंद्र चोल प्रथम के नौसैनिक बेड़े श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशियाके कई भागों तक पहुँचे और वहाँ भारतीय संस्कृति के ध्वजवाहक बने।भारत के प्रतापी सम्राटों के शौर्य प्रराक्रम प्रजावत्सलता सामाजिक-सांस्कृतिक सरोकारों का दिग्दर्शन करवाकर गौरवबोध जाग्रतï करनेवाली प्रेरक पुस्तक।