साठ वर्षों से भारतीय लोकतांत्रिक परंपरा ने विश्व भर में अपना परचम लहराया है। हमारी अर्थव्यवस्था में भी व्यापक सुधार हुआ है। मगर इसके बावजूद अमीर और गरीब के बीच की खाई बढ़ती जा - रही है। नक्सलवाद आतंकवाद और भ्रष्टाचार से सारा देश त्रस्त है। अनेक दलों के गठबंधन से बनी सरकारें खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद में लगी रहती हैं। संसद में प्रतिनिधित्व नगण्य होते हुए भी छोटे राजनीतिक दलों और क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है। मगर । इस सबके साथ ही शासनिक प्रक्रियाओं. सरकारी एजेंसियों के बीच सत्ता का वितरण राजनीतिक पार्टियों संसद की गतिविधियों आदि का मूल्यांकन करना भी ज़रूरी है। लेखक का मानना है कि संसद के कामकाज और सरकार के अन्य अंगों की कार्य-प्रक्रिया में सुधार वांछित है। रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया । के भूतपूर्व गवर्नर राज्यसभा के मनोनीत सदस्य तथा अनेक महत्वपूर्ण पदों पर आसीन रह चुके बिमल जालान ने भारतीय राजनीति में व्याप्त भ्रष्टाचार व उसकी कमियों को क़रीब से देखा है। इस पुस्तक में उन्होंने इस विषय पर गहन चिंतन किया है और उसमें व्यापक सुधार लाने के लिए अमूल्य सुझाव दिए हैं।
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