भारतीय संस्कृति में नारी को गौरवशाली स्थान प्राप्त रहा हैं वैदिक काल से ही नारी को देवी तुल्य मानकर पूजा गया हैं। नवरात्र के अवसर पर भी देवी की पूजा की जाती हैं। ऋग्वेद में ब्रह्मज्ञानी पुरूषो के साथ ब्रह्मवादिनी महिलाओं का नाम आता हैं जिनमें विश्रवारा लोपा मुद्रा घोसा इन्द्राणि दैवयानी मैत्रेय गार्गी अनसूइया अपाला विधोतमा आदि मुख्य हैं। पुरूष के नाम से पहले नारी का नाम आता था जैसे राधा-कृष्ण सीता-राम गौरी-गणेश आदि। अब्राहिम लिंकन ने भी अपनी समस्त उपलब्धियों के लिए स्वयं को अपनी माँ का ऋणी माना हैं किन्तु आज संसार के किसी भ्ीा समाज में महिलायें पुरूषो के समान नहीं हैं। समाज में पुरूषो को महिलाओं की अपेक्षा ज्यादा अधिकार संसाधन और निर्णय लेने की शक्ति प्राप्त हैं। जबकि लड़कियों को घरेलू कार्याे में लगाना उन्हें बेटे की अपेक्षा कम अच्छे स्कूल में पढ़ाना या न पढ़ाना तथा लड़कियों को दब्बू एवं शर्मिली बनाना पु़ित्रयों पर कम पैसा खर्च करना आदि शामिल हैं।
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