...यह बात मेरे रोम-रोम में उतर गई कि भरोसे का दूसरा नाम है- भगवान। इसी कृपा और भरोसे को यदि सब में समय रहते न बांटा गया तो कुछ ऐसा मेरे साथ रह जाएगा जिस पर सबका अधिकार है। यह विचार हैं सात्विक लेखक-संत "पं. विजयशंकर मेहता जी" के जिन्होंने अपने जीवन की घटनाओं और विचारों को अपनी किताब "भरोसा द फेथ" में बहुत ही आध्यात्मिक तरीके से प्रस्तुत किया है। लेखक के बारे में : पं. विजयशंकर मेहता ऐसे सात्विक लेखक-संत हैं जिनके लेखन में सत्साहित्य और संस्कृति के दर्शन होते हैं। दैनिक भास्कर में अपने नित्य लेखन से वे समाज में जागृति पैदा कर रहे हैं। लेखन के साथ उनमें अद्भुत वक्तृत्व कला भी है। अपनी वाणी व लेखन से वे हनुमान जी की अद्भुत साधना कर रहे हैं।
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