भारतीपुर ह और कलात्मक रचनाशीलता से औपन्यासिकता को नया संस्कार और आयाम देनेवाले विवादास्पद कन्नड़ लेखक यू–आर– अनन्तमूर्ति का बहुचर्चित उपन्यास है ‘भारतीपुर’ । यों ‘भारतीपुर’ एक दक्षिण भारतीय बस्ती की कहानी है लेकिन बस्ती तो एक बहाना है । दरअसल यह समसामयिक भारतीय जीवन के दहशत पैदा करनेवाले अनुभवों और तिलमिला देनेवाले यथार्थ का बहुत तीखा और एक हद तक अविश्वसनीय लगनेवाला दस्तावेज़ है । भारतीपुर नामक बस्ती में मंजुनाथ का एक मन्दिर है । वह मन्दिर केवल देवालय नहीं उस बस्ती की सारी व्यवस्था का केन्द्र हैµएक ऐसा केन्द्र और नियामक स्थल जहाँ से ढोंग पाखंड स्खलन और दुराचार के अजस्र स्रोत फूटते हैंµसारी बस्ती के जीवन को समेटने जकड़ने और यथास्थितिवाद को सुरक्षित बनाए रखने के लिए । ऐसे में सामाजिक परिवर्तन लाने की कोई भी भूमिका या उसका कोई प्रयत्न न केवल निष्फल होकर रह जाता है बल्कि अपने पीछे श्रीपतिराय और अडिगजी जैसे लोगों की कुंठित और हताश पीढ़ी छोड़ जाता है । ईश्वर पूँजी और पाखंड की मिली–भगत और उसकी स सत्ता के असली चेहरे को उजागर करनेवाले इस उपन्यास की सबसे बड़ी शक्ति हैµइसका सामाजिक सन्दर्भ जो रचना को तो अतिरिक्त ऊर्जा देता ही है उपन्यास को बेहद प्रासंगिक भी बनाता है । गहरी संवेदना मार्मिक भाषा भेदक सामाजिक दृष्टि और ह रचनाशीलता के लिए विख्यात अनन्तमूर्ति का यह उपन्यास भी हिन्दी पाठकों के लिए एक नया अनुभव देता हैµ‘संस्कार’ की ही तरह ।.
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