डॉ. राधाकृष्णन् के महत्वपूर्ण दर्शन—ग्रंथ ''इंडियन फिलॉसफी'' के दूसरे खंड का अनुवाद है। इस विद्वतापूर्ण ग्रंथ में लेखक ने बौद्धकाल के अंतिम चरण अर्थात् हिन्दू-धर्म—पुनर्जागरण-काल से आज तक के भारतीय दर्शन के विकास की विशद विवेचना और अध्ययन प्रस्तुत किया है। विशेषतः षड्दर्शन के छहों अंगों पर मध्ययुग के पहले और बाद के हिन्दू धर्म के व्याख्याताओं की स्थापनाएं यहां प्रतिपादित हुई हैं। इन मनीषियों की स्थापनाओं की दार्शनिक विशिष्टताओं को विश्व के अन्यान्य दार्शनिकों के मतों की तुलना में रखते हुए लेखक ने भारतीय धर्म और दर्शन की वैज्ञानिकता और जीवन के साथ उनकी संगति को बहुत ही उदात्त और निष्पक्ष रूप से दर्शाया है। पुस्तक के अंतिम अंश में संपूर्ण दर्शन वाङ्मय पर लेखक के समन्वयात्मक विचार प्रस्तुत हुए हैं। डॉ. राधाकृष्णन् की विद्वता और उनकी लेखन-शैली की मौलिकता की विश्व के विद्वानों ने प्रशंसा की है। प्रस्तुत ग्रंथ उनकी उन सारी विशेषताओं से युक्त एक विशिष्ट कृति है।
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