BHARTIYA RASHTRAVAD AUR RISHI ARVIND


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About The Book

श्री अरविंद ने भारतीय राष्‍ट्रवाद को एक आध्‍यात्मिक संस्‍पर्श दिया । उनका मत था कि मनुष्‍य का सर्वश्रेष्‍ठ सुरक्षा कवच यह आध्‍यात्मिकता ही है । उन्‍होंने राष्‍ट्र और राष्‍ट्रीयता को एक सर्वथा नवीन आयाम प्रदान करते हुए उसे एक वृहद दृष्टिकोण दिया । वे राष्‍ट्रीयता को एक चिरस्‍थायी आध्‍यात्मिक बल मानते थे । राष्‍ट्रवाद ही सच्‍चा धर्म है और स्‍वतंत्रता एक ईश्‍वरीय कार्य । वे ईश्‍वर को राष्‍ट्रवाद का स्रोत मानते थे । श्री अरविंद ने आध्‍यात्मिक राष्‍ट्रवाद को ‘आदर्श राज्‍य’ के रूप में प्रस्‍तुत किया । यही आदर्श राज्‍य आगे चलकर स्‍वराज्‍य का रूप लेता है । श्री अरविंद ने धर्म को भारतीय लोकतंत्र का मूलमंत्र बताते हुए राष्‍ट्रीय एकता के लिए इस सूत्र को महत्‍वपूर्ण माना है । उनका विचार था कि बाह्य परिवेश को सुधारने के लिए अंतरात्‍मा की शुद्धता अत्‍यावश्‍यक है । ​श्री अरविंद ने भारत के समग्र पुनरूत्‍थान एवं मानव जाति के समग्र परिवर्तन का दोहरा आदर्श प्रस्‍तुत किया । यह उनके व्‍यक्तित्‍व एवं कृतित्‍व की परिपक्‍वता का परिचायक है । ​श्री अरविंद के राष्‍ट्रवाद में आक्रोश खिन्‍नता और आक्रामकता के लिए कोई अवकाश नहीं है । वे स्‍वराज हेतु सेवा और आत्‍मबलिदान की आवश्‍यकता को अनिवार्य मानते थे । वे एक प्रखर राष्‍ट्रवादी थे । उन्‍हें भारत की सांस्‍कृतिक परम्‍पराओं और प्राचीन मूल्‍यों पर असीम गर्व था । उन्‍होंने भारत के स्‍वतंत्रता संग्राम को धर्मयुद्ध की संज्ञा दी थी ।जिस प्रकार श्रीमदभगवतगीता में भगवान श्रीकृष्‍ण ने अर्जुन को धर्मयुद्ध करने के लिए प्रेरित किया उसी प्रकार श्री अरविंद ने ब्रिटिश सत्‍ता के खिलाफ भारतीयों को संगठित होकर नैतिक शक्ति द्वारा संघर्ष करने का आवाह्न किया । ​
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