भाषादर्शन नामक ग्रन्थ का प्रकाशन इसलिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि आज हम शब्द की मूल प्रकृति से भटक गये हैं। शब्द स्वरूप की विवेचना पर ध्यान न देकर उसके अर्थ का अनुसन्धान अन्धकार में करते हैं। व्युत्पत्ति विज्ञान ही आधार शिला है भाषा चिन्तन के प्रवाह में। भाषाविज्ञान ने भी धातु सिद्धान्त से भाषा की उत्पत्ति मानी है। पाणिनीय तथा अन्य व्याकरणों ने इसीलिए अपना अपना पृथक् धातुपाठ भी उपदिष्ट किया। इसीलिए प्रकृत ग्रन्थ की योजना में शब्दार्थ भाषा चिन्तन पर यास्क पाणिनि पतञ्जलि भर्तृहरि प्रक्रियाकार काव्यशास्त्र आदि की दृष्टि से जो शास्त्रीय विचार किया गया है उसका प्रभाव हिन्दी आदि अनेक भाषाओं के क्षेत्र में अवश्य उपयोगी व ऊर्जावान् साबित होगा।
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