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About The Book
Description
Author
मानव जीवन में सौन्दर्य के प्रति आकर्षण कुरूपता से कुछ कम नहीं। ये दोनों परस्पर पहचान दिलाने वाले तथ्य हैं। श्रेय व प्रेय में से औचित्य का चयन मानवीय विवेक पर निर्भर है। वर्तमान में अविवेकी चयन के फलस्वरूप वयक्तिक वा सामाजिक व्यवहार में सत्य स्नेह समता करुणा उदारता जैसे भावनात्मक उज्ज्वल मोती धूमिल पड़ते जा रहे हैं। अधिकांश मानस धन धर्म व जाति आधारित बड़प्पन के ग़ुबार से मानुषिक चमक फीकी करता दिखायी दे रहा है। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति रचनात्मकता में प्रमाद कार्य-शैली में उन्माद तथा नादान शैशव के साथ घृणित चारित्रिक उत्पीड़न वाला अवसाद मानवता को कलंकित कर रहा है। नैतिक एवं संवैधानिक आचरण बे-लगाम होता जा रहा है मानव मूल्य गिर रहे हैं। मानवी सुख-दु:ख की सुधि एवं दुराचरण पर नियंत्रण का दायित्व सरकार के अतिरिक्त व्यक्ति व समाज का काम नहीं है। ‘भटका हुआ विकास कविता संग्रह में उक्त परिदृश्यों का चित्रण कविताओं के माध्यम से मेरे द्वारा किया गया है।