Bhav Ayushman

About The Book

इक कहानी मेंसौ-सौ उपन्यास है I .. अद्भुत है साहब यह कहानी या उपन्यास इसलिए भी क्योंकि बहुत से किताबों को पढ़ने का अवसर मिलता है उसके भीतर जाने समझने का प्रयास होता है और बहुत कुछ कहा-अनकहा एक पुस्तक में भी होता है परंतु जब इस किताब को मैंने पढ़ना शुरू किया तो सच कह रहा हूँ कथानक के स्तर पर पात्रों के स्तर पर वर्णन के स्तर पर इतनी ज्यादा मेहनत की गई है इतना अच्छे से सोचा गया है कि हर पात्र अपने साथ एक अलग कहानी लेकर के चल रहा है और वह भी पूरे मनोयोग के साथ। इसके लिए सुकेश श्रीवास्तव जी की रचनाधर्मिता भी बेजोड़ है। अतः इस पुस्तक के लिए उनका भी योगदान भी बहूमूल्य है। उन्होंने कहीं किसी को कम ज्यादा किया ही नहीं गया है बल्कि यूँ कहें कि कई बार तो विवरण अधिक-सा हो जाता है परंतु यही इसकी खूबसूरती भी है कि किसी को समझने और जानने के लिए उसे पूरा समझना होता है उसके पास पूरा-पूरा होकर जाना होता है और यह कमाल करके लाजवाब कर दिया है- पीयूष जी एवं सुकेश श्रीवास्तव जी ने। यहाँ प्रेम है संघर्ष है निष्ठा है परंपराएँ हैं मूल्य बोध है परिवर्तन भी है प्रतिरोध भी है विस्मय भी है। अचानक कुछ हो रहा है पर यह सब एक सही रास्ते पर जाते हुए हो रहा है सबको उसका स्पेस दिया गया है और ऐसा लगता है कि सब इस पूरे कथा-मूल को अपने-अपने स्तर से खूबसूरत विविध और पूर्ण करने की ओर बढ़ रहे हैं। सचमुच पात्रों के प्रति इतनी ईमानदारी न्याय-प्रियता और इतनी मेहनत ही इसी रचना को भी सार्थक बनाती है क्योंकि यहाँ पर लेखक की इमानदारी होती है उसकी सोच उसकी संवेदना के विस्तारित आयाम और जीवन की भावनाओं के बहुकोणीय प्रतिनिधित्व का सूक्ष्म-से-सूक्ष्म प्रदर्शन और अभिव्यक्ति होती है। कह सकता हूँ कि यह कहानी वह वटवृक्ष है जिससे हज़ारों कहानियों की शाखाएँ फूट रही हैं। - (डॉ श्लेष गौतम)
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