Bhav Vigrah


LOOKING TO PLACE A BULK ORDER?CLICK HERE

Piracy-free
Piracy-free
Assured Quality
Assured Quality
Secure Transactions
Secure Transactions
Fast Delivery
Fast Delivery
Sustainably Printed
Sustainably Printed
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.
Review final details at checkout.

About The Book

यह किताब गीत, ग़ज़ल, कविता, मुक्तक और कुछ अशआर का संग्रह है। इसमें शामिल विषय मुख्य रूप से मानवीय संवेदनाओं के हैं। समसामयिक विषय भी हैं, सामाजिक विसंगतियों पर व्यंग्य भी है, सामाजिक समरसता और देशभक्ति भी है। कहीं-कहीं कुदरत का वर्णन है और ज़्यादातर जीवन जीने के तौर-तरीक़ों पर बात की गई है। पुस्तक के केंद्र बिंदु मनुष्य, उसकी संवेदना, अहसास, संवेदनशीलता, परस्पर संबंध और अनुभूतियाँ, सहनशीलता, धीरज आदि का समन्वय हैं। जीवन दर्शन पर भरपूर ध्यान देने की कोशिश की गई है। कुछ रचनाएँ ईश्वर की और इंगित करती हैं और एक रचना में तो गीता से मिली सीख को समझने की भी कोशिश की गई है। कुल मिलाकर ये पुस्तक जीवन जीने और उसे समझने की तरफ़ एक ईमानदार कोशिश है। जीवन के मूल्यों घर, देश, समाज पर पड़ने वाले प्रभाव और उसमें सुधार करने की कोशिश की गई है। कुछ-कुछ रचनाएँ थोड़ी लंबी हैं जैसे “मैं गीता समझ रहा हूँ”, जिसे इससे छोटा शायद नहीं लिखा जा सकता था; क्योंकि ये बहुत विस्तृत और अपरिमित विषय है। कुछ और कविताएँ जैसे “गाँव और शहर” और “ख़ुदा का शिवाला भी” लंबी रचनाएँ है । कुछ रचनाएँ बहुत छोटी भी हैं। इस पुस्तक का सबसे प्रशंसनीय पहलू इसमें सम्मिलित रचनाओं का सकारात्मक दृष्टिकोण है। समस्याओं में उलझे रहने या निराश हो जाने की जगह उनका निराकरण, निवारण और आगे बढ़ जाने और बढ़ते चले जाने को प्राथमिकता दी गई है। बढ़ते रहने और चलते रहने, चलते चले जाने का आग्रह साफ़ झलकता है। पुस्तक की भाषा सीधी-सादी, सरल और मन की छूने वाली है। आसान बोलचाल की भाषा का और प्रचलित हिन्दी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है। मन के भावों को प्रवाहित करना ही लिखने का प्रमुख उद्देश्य है। संरचना के नियम आदि की तरफ अत्यधिक आग्रह की जगह भाव संप्रेषण का भाव अग्रणी प्रतीत होता है। पुस्तक पढ़ने में आपको आनंद आएगा, ऐसी आशा है। आपके सुझावों का स्वागत है।
downArrow

Details