मैं एक चिकित्सक हूँ किन्तु उसके साथ इस समाज का एक अभिन्न अंग भी व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन में अनेकों अनुभव आपको शिक्षित करते हैं परिष्कृत कर उन्नत करते हैं। कविता लेखन गत वर्ष तक ना मेरी रूचि थीना अभिलाषा १२ अगस्त २०२४ को मुखपृष्ठ पटल(fb)पर पिताजी के जन्मदिन हेतु अपने हृदयोद्गार लिखे तो बन गई कविता और फिर मेरे शुभचिंतकों के प्रोत्साहित करने पर कुछ और कविताएं लिखीं फिर शीतल ओझा का सृजन देखकर विचार आया संकलित कर प्रकाशन और संरक्षण का। मैं कोई कवि नहीं बस अपने कालखंड में हो रहे परिवर्तन और अपने विचारों से स्वयं के हुए साक्षात्कार को कलमबद्ध करने का प्रयास मात्र है यह रचना।आवश्यक नहीं सब मेरे विचारों से सहमत हों किन्तु यह संग्रह भूत वर्तमान और भविष्य का मेरी कलम से हुआ चित्रण है जिसमें कंही ना कंही आप भी अपने भाव अनुभूत कर पाएंगे। कविता स्वर माला में पिरोई हृदय के उद्गार की अभिव्यक्ति है जब भी मन मुदित हो या द्रवित हो बन जाती है कविता। समसामयिक विषयों की समझ और विचार प्रकट करने का माध्यम है कविता। कभी किसी को समझाना हो कभी समझना हो तो बन जाती है कविता । स्वरलडी भावों की जुड़ी और हो जाती है कविता।जीवन का महत्वपूर्ण सार निहित है इस निम्नलिखित मंत्र में। ॐ पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते। ॐ शांति: शांति: शांतिःयह मंत्र बृहदारण्यक उपनिषद के पांचवें अध्याय से है और ईशावास्योपनिषद का शांति पाठ है। वह (ब्रह्म) पूर्ण है यह (जगत्) भी पूर्ण है। (उस) पूर्ण ब्रह्म से ही यह पूर्ण विश्व प्रादुर्भूत हुआ है । उस पूर्ण ब्रह्म में से इस पूर्ण जगत् को निकाल लेने पर भी पूर्ण ब्रह्म ही शेष रहता है । ये कृति समर्पितसनातन के समस्त प्रणेता कोजिनने संजोया उन पुरोधा कोरक्षित कर रहे उन योद्धा कोरश्मि प्रसार रहे उन सिद्धा कोसादर नमन सनातन श्रद्धा को।।
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