मनुष्यता की पहचान भाव के बिना हो हीं नहीं सकता। संसार में जितने भी प्राणी है सभी में भाव विद्यमान है। लेकिन मनुष्य में इसकी विशेषता है। मनुष्य अपनी भाव को बोल सकता है समझा सकता है और लिख भी सकता है। मनुष्य में सदा एक भाव नहीं रह सकता। जन्म से लेकर मृत्यु के बीच में समय समय पर अपने अवस्था के अनुसार भाव की विशेषता रहता हीं है। यह स्वाभाविक है। जिस प्रकार प्रकृति अपने समय अनुसार ऋतु बदलते रहता है और उसी ऋतु के अनुसार हम उस प्रकृति के स्वभाव को अनुभव करते है । ठीक उसी प्रकार से मनुष्य में आपको अनेक प्रकार के भाव दिखेगा 'भाव नगरी' इस पुस्तक में मनुष्य की उसी भाव को कविता और गीत के रूप में ढालने का प्रयास किया है। हमे पूरा भरोसा है की आपको यह पढ़ने में अच्छा लगेगा। और इसे पढ़ने के बाद आप अपने आपको उसी 'भाव नगरी' में कुछ पल के लिए पायेंगे।
Piracy-free
Assured Quality
Secure Transactions
Delivery Options
Please enter pincode to check delivery time.
*COD & Shipping Charges may apply on certain items.