‘भीड़ में अकेला’ में मौजूद हर लघुकथा एक चुप आहट की तरह है— वो तब सुनाई देती है जब हम थोड़ा ठहरते हैं थोड़ा देखते हैं और थोड़ा महसूस करते हैं। अगर इनको पढ़ते हुएआपको अपने जीवन का कोई क्षण याद आ जाए— या कोई पुराना रिश्ता या कोई भूली हुई मुलाक़ात या फिर कोई अनजान चेहरा जिससे कभी कोई अनकहा जुड़ाव हुआ हो—तो समझिए इस शृंखला की लघुकथाओं ने आपसे बात कर ली। या फिर कभी अगली बार जब आप मेट्रो में किसी के बगल बैठें किसी कैफे में किसी को अकेला देखें या किसी लाइब्रेरी में चुपचाप पन्ने पलटते किसी अजनबी को नज़र आएँ—तो हो सकता है आपके भीतर से भी आवाज आए—“क्या तुम भी अकेले हो?” या ये आवाज आए तुम ठीक हो? —तो यकीन मानिए मेरी लेखनी का उद्देश्य पूरा हुआ। और हो सकता है यहीं से एक कहानी शुरू हो— किसी भीड़ में किसी के का अकेलेपन को पहचानने का या एक छोटी-सी पर सच्ची दोस्ती की या फिर किसी अनकहे रिश्ते की। मेरे इस लघुकथा शृंखला के संग्रह को प्रकाशित करने के लिए न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन का हृदय से आभार व्यक्त करता हूँ। मुझे लगता है कि लघुकथा में लघुकथा शृंखला का प्रयोग पहली बार हो रहा है। आप मेरी इन लघुकथा शृंखला की लघुकथाओं को पढ़िए और बताइए कि मेरा ये प्रयोग कैसा लगा? --पवन शर्मा
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