Bheege Kanwal

About The Book

About the Bookकिसी भी रचना को लिखने के लिए रचनाकार का संवेदनशील होना नितांत आवश्यक होता है । जीवन की पीड़ा व मेरे आसपास घाट रही घटनाओं को मैंने जिस तरह से समझा व जाना है उसे अपनी कलम एवं बुद्धि अनुसार कविताओं में उकेर दिया है । व्याकरण विधाओं के बंधन से प्राय: मेरी कविताएँ मुक्त रहती हैं । भाव नितांत मौलिक हैं अतः लगता है आप सबको बहुत पसंद आएँगी । “भीगे कँवल” की यादें किसी भी मेरी रचना से आप अपने को जोड़ पाये तो मैं अपना प्रयास फलीभूत समझूंगी । सत्य और पीड़ा दोनों ही शाश्वत होते हैं । इन्हीं दोनों भावों से ओतप्रोत है मेरी यह चतुर्थ पुस्तक “भीगे कँवल” ।
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