Bheegi Bheegi Do Aankhein


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About The Book

हम पर ख़ूब लुटाते अपना प्यार हमारे बाबूजी। पल-पल करते ख़ुशियों की बौछार हमारे बाबूजी॥ हमने जो फ़रमाइश कर ली केवल एक खिलौने की। घर में लाकर रख देते बाज़ार हमारे बाबूजी॥ दुख तकलीफ़ें आना भी चाहें तो कैसे आ पातीं। बीच खड़े थे बनकर इक दीवार हमारे बाबूजी॥ राह निकल जाते तो झुक जाता था हर सर इज़्ज़त से। बस्ती में इतने थे इज़्ज़तदार हमारे बाबूजी॥ मर जाना मंज़ूर उन्हें था झुक जाना मंज़ूर नहीं। माँ कहती है ऐसे थे ख़ुद्दार हमारे बाबूजी॥ अम्मा जब बीमार पड़ी तो सेवा करते नहीं थके। हालाँकि सेहत से थे लाचार हमारे बाबूजी॥ बेटी जब डोली में बैठी साहस उनका टूट गया । जीवन में रोये थे बस इक बार हमारे बाबूजी॥ कोई मुश्किल कोई अड़चन उनसे जीत नहीं पाई । मौत तुझी से मान गये थे हार हमारे बाबूजी॥ जब तुम थे होली होली थी दीवाली दीवाली थी। अब जाते हैं सूने हर त्यौहार हमारे बाबूजी॥ तुम कैसे हो उस दुनिया में जन्नत जिसको कहते हैं। भेजो कोई चिट्ठी कोई तार हमारे बाबूजी॥ बरसों बीत गये हैं लेकिन अब भी ऐसा लगता है। उस कमरे में बैठे हैं तैयार हमारे बाबूजी॥
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