केतु ग्रह एक छाया ग्रह है। यह दैत्यराज असुराधिपति राहु का धड़ भाग है । इसका रंग धूम्र है। राहु सर्प का मुख है तो केतु सर्प की पूंछ है। अतः इसे Dragon Tail कहते हैं। सूर्य-चंद्र ग्रहण केतु के कारण ही होते हैं। ग्रहण काल में पृथ्वी के दक्षिणी ध्रुव (South node) को केतु कहते हैं यह इसका वैज्ञानिक पक्ष है। केतु का प्रतीक ध्वजा (Flag) है। केतु व्यक्ति के सर्वनाश कार्य में अवरोधक बाधा व अरिष्ट का द्योतक है तो साथ ही लालबत्ती की गाड़ी पद-प्रतिष्ठा अधिकार कीर्ति युद्ध में विजय केतु दिलाता है। अतः इस हेतु लिखा गया ‘केतु खंड यहांप्रस्तुत है ।है बारह लग्न एवं बारह भावों में केतु की स्थिति को लेकर 144 प्रकार की जन्मकुंडलियां अकेले केतु को लेकर बनीं। इसमें केतु की अन्य ग्रहों के साथ युति को लेकर भी चर्चा की गई है। फलतः 144 9 ग्रहों का गुणा करने पर कुल 1296 प्रकार से केतु की स्थिति पर फलादेश की चर्चा इस ग्रंथ में मिलेगी ।पूर्वाचार्यों के सप्रमाण मत के अलावा इस पुस्तक का उपचार खंड सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण है। जिसमें प्रतिकूल केतु को अनुकूल बनाने के लिए वैदिक पौराणिक तांत्रिक लाल किताब व अन्य अनुभूत सरल टोटके रत्नोपचार व प्रार्थनाएं दी गई हैं। जिससे तत्त्वग्राही प्रबुद्ध पाठकों के लिए यह पुस्तक अनमोल वरदान साबित हो गई। पीड़ित मानवता के कष्टों को दूर करने की श्रृंखला में लोककल्याण की उत्तम भावना को लेकर डॉ. भोजराज द्विवेदी द्वारा परिश्रमपूर्वक लिखे गए ऐसे उत्कृष्ट साहित्य को प्रकाशित करते हुए हमें गर्व का अनुभव हो रहा है ।
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