हिंदी भाषा पर विचार करते समय हम उसकी सहभाषाओं के अवदान को नहीं भुला सकते क्योंकि हिंदी की असली शक्ति उसकी तद्भव संपदा में है। इन तद्भवों का एक बड़ा स्रोत उसकी सहभाषाएँ और बोलियाँ हैं। इन जनपदीय भाषाओं में रचे साहित्य ने भक्ति आंदोलन और देश के स्वतंत्रता-संग्राम में विशेष योगदान किया था। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि तुलसी कबीर सूर रैदास मीरा जैसी विभूतियों को लेकर ही हिंदी हिंदी’ है। ये सभी महान रचनाकार अपनी रचनाएँ हिंदी की सहभाषाओं अवधी ब्रज भोजपुरी और राजस्थानी में रच रहे थे। इस तथ्य की सार्थकता हेतु जनपदीय भाषाओं के शब्दकोशों की आवश्यकता स्वयंसिद्ध है। औपचारिक भाषा के रूप में आज खड़ी बोली हिंदी ही अधिक प्रचलित हो रही है इसलिए जनपदीय भाषाएँ अतिरिक्त ध्यान की अपेक्षा करती हैं। आज नगरीकरण और वैश्वीकरण से सब कुछ एकसार हुआ जा रहा है और भाषाओं की विविधता पर खतरा मँडराने लगा है। ऐसे में हिंदी भाषा का दायित्व बढ़ जाता है। भोजपुरी भारत के उत्तर प्रदेश और बिहार क्षेत्र में प्रचलित एक जीवंत भाषा है। साथ ही मारीशस सूरीनाम त्रिनिदाद गुयाना फिजी आदि देशों में भारतवंशियों के बीच भी भोजपुरी का प्रयोग प्रचलित है। इस तरह भोजपुरी हिंदी के अंतरराष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य का एक विशेष हिस्सा है जिसकी उपेक्षा नहीं की जा सकती। भोजपुरी की वैश्विक भूमिका लोकप्रियता हिंदी के बढ़ते अंतरराष्ट्रीय महत्त्व तथा अंग्रेजी की सार्वदेशिक उपस्थिति के परिप्रेक्ष्य में यह त्रिभाषी भोजपुरी-हिंदी-अंग्रेजी शब्दकोश’ निश्चित रूप से कोशकला का एक अनुपम प्रमाण सिद्ध होगा। विस्मृति के गर्भ में चले गए शब्दों को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न यहाँ नहीं किया गया है और फूहड़ एकांगी और विवादास्पद शब्दों से परहेज करके कोश को भारी-भरकम और बोझिल होने से बचाया गया है। आशा है पाठकों को यह शब्दकोश उपयोगी लगेगा।
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