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About The Book
Description
Author
देवकीनन्दन खत्री कृत भूतनाथ उपन्यास अपने आप में एक विशेषता लिए हुए है। यह एक तिलिस्म उपन्यास है। चंद्रकांता की कहानी को चंद्रकांता संतति में आगे बढ़ाया गया और उसके बाद उसी कहानी को भूतनाथ और रोहतास मठ के जरिये अंजाम तक पहुँचाया गया। चंद्रकांता संतति में भूतनाथ का आगमन एक तुरुप के पत्ते की तरह होता है जो छलावे की तरह आता है और बाज़ी पलट के चला जाता है। चंद्रकांता संतति के पूरक के रूप में भूतनाथ सीरिज़ लिखी गयी थी ये 7 जिल्द का उपन्यास देवकीनन्दन खत्री का महत्त्वाकांक्षी उपन्यास था जिसे वे पूरा नहीं कर सके थे। माना जाता है कि अगर वे इसे पूरा कर पाते तो यह उपन्यास काल्पनिक उपन्यासों का सरताज होता। पर खत्री जी का इस उपन्यास को पूरा करने से पहले ही निधन हो गया। उनके बेटे दुर्गा प्रसाद खत्री ने इस उपन्यास को पूरा किया। लेकिन देवकीनन्दन खत्री की लेखनी में जो चमत्कृतता थी वह उनके बेटे की लेखनी में नज़र नहीं आई। इस उपन्यास की रचना के पीछे खत्री जी की कल्पना शक्ति को शत्-शत् नमन है। लाखों-करोड़ों पाठकों का यह उपन्यास कंठहार बना हुआ है। जब यह कहा जाता है कि चंद्रकांता और चंद्रकांता संतति पढ़ने के लिए लाखों लोगों ने हिंदी भाषा सीखी तो इस कथन में भूतनाथ भी स्वतः सम्मिलित हो जाता है क्योंकि भूतनाथ उसी तिलिस्मी और ऐय्यारी उपन्यास परंपरा का ही नहीं उसी श्रृंखला का प्रतिनिधि उपन्यास है। कल्पना की अद्भुत उड़ान और कथासार की मार्मिकता इसे हिंदी साहित्य की विशिष्ट रचना सिद्ध करती है।