सदियों सदियों से देह के साथ दो अतियां जुड़ी हुई हैं—तिरस्कार या भोग। कभी तो हमने इसे वीरान श्मशान ही बना दिया है तपश्चर्या के नाम पर अत्याचार करके या फिर इसे वेश्या बना कर छोड़ दिया है जैसे कि यह अपनी नहीं किसी की भी न हो। रहस्यदर्शियों ने इसी देह को कभी मंदिर के रूप में देखा है तो कभी अस्तित्व की सर्वश्रेष्ठ कृति के रूप में। यारी उसी शृंखला की एक कड़ी हैं जो इस देह मंदिर में दीया जलाने की बात करते हैं। पुस्तक का शीर्षक व प्रारंभिक पंक्तियां हैं—‘बिरहिनी मंदिर दियना बार’ अर्थात ‘ऐ बिरही लोगो! अपने घर में आत्म ज्योति जलाओ’। यह ज्योतिर्मय प्रतिमा नये मनुष्य की प्रतिमा है जिसे ओशो ‘दिस वेरी बॉडी द बुद्धा’ ‘यही देह बुद्ध की मूरत’ कहते हैं।
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