Bonsai Nahin...Bargad Hun Main (बोन्साई नहीं...बरगद हूँ मैं)
Hindi

About The Book

कवयित्री शारदा का यह काव्य-संग्रह जीवन के विविधागामी अनुभवों को हृदय- सीप से उमड़े मोतियों की तरह पिरोए है जो नकली मशीनी मोतियों की तरह एक सी आभा लिए नहीं अपितु उन मानकों को तरासे हुऐ है जिनमें कहीं मां-पापा के वात्सल्य का आलोड़न है , तो कहीं रिश्तों में रोमांस और रोमांच दोनों के ही पल सिमटे हैं, समाज की बदलती परिस्थितियों के हकीकी जख्म और विद्रूपताएँ भी हैं, झूठे सेवाकर्मियों पर व्यंग के छींटे भी खूब हैं, राजनीति के संत्रास भी हैं। कहीं प्रदूषण में खोई प्रकृति का चित्रण है तो कहीं वृद्धाश्रमों में तड़पती ममता है याने जीवन के सतरंगी रंगों में पिरोए ये स्वप्न अपनी गहन प्रतिच्छाया से सम्पूर्ण संग्रह को समेटे हैं।<br>शिल्प की दृष्टि से भी काव्य विविधागामी है इसमें रसों की नदियां नहीं, अपितु भावों के छींटे हैं जो कहीं-कहीं तो तपते लोहे पर पड़ी ठंडी बूंद से चटक कर मन की आक्रोशाग्नि को प्रज्वलित करते हैं, तो कहीं चंदन मिट्टी बूंद से मन को शीतल सुरभित भी बनाते हैं। कवयित्री की भाषा पर भी अप्रतिम पकड़ है। सटीक शब्द और उनके सुगढ़ पर्यायवाची चंद पंक्तियों में ही भावों की अथाह पीड़ा को साकार करने में सक्षम हुए हैं। मुक्त छंद की मस्त धारा में प्रवाहित यह काव्य वास्तव में अद्वितीय है यथार्थ में मां सरस्वती की अपूर्व अनुकंपा है कवयित्री पर। मां शारदे के नामारुप कवयित्री शारदा का काव्य अपने-आप में संपूर्ण एवं अतुलनीय है। भविष्य में भी वे और भी गहन काव्यानुभूतियों का सृजन करती रहें इन्हीं शुभकामनाओं के साथ।
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