BOTA RAHUNGA KAVITA KE BEEJ

About The Book

गया प्रसाद ‘सनेही’ वक्त की हर चाल नजाकत तथा हकीकत पर पैनी नजर रखते हैं समकाल की सम्यक् पड़ताल करते हैं और अर्जित की गयीं अनुभूतियों के आलोक में कविताओं को जन्मते हैं। सियासत तथा सच पर उनकी नजर रहती है। रहनुमाई की विसंगतियों तथा किसी भी चूक पर वे चूकते नहीं हैं। व्यंग्य के बाण अवश्य छोड़ते हैं। प्रतिरोधात्त्मकता की आवाज को बुलन्द करते हुए वे कहते हैं- ‘‘कुछ हमारे ही प्रिय हिन्द के रहनुमा/नित जलाते नहीं राहतों की शमा/साँस जनतंत्रा की आज है रुक रही। किन्तु वे कह रहे अब अमन चैन हैं।’’
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